मंगलवार, 3 जनवरी 2012


असली नेता की प्रतीक्षा में है झारखण्ड


अरुण कुमार झा 

ranchi drishtipat dece 11
पथ भ्रष्ट झारखंड की राजनीति के छः धुरन्धरॊ मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, भानु प्रताप शाही, एनोस एक्का एवं हरिनारायण राय की दुर्दशा देखकर झारखंड के आम आदमी अपने को झारखंडी कहने में लज्जित होता है। लेकिन वहीं दिशाहीन झारखंड के नेताओं को इसकी कोई ग्लानि नहीं है।  भारत में कोई दूसरा प्रान्त नहीं है, जहाँ छः पूर्व मंत्राी एक साथ जेल में जीवन बीता रहे हों। मधु कोड़ा का तो कई रिकार्ड जग जाहिर है। एक रिकार्ड यह भी है कि पूरी दुनिया में मधु कोड़ा ही है, जिस पर निगरानी, सीबीआई, आईटी और इडी का एक साथ मुकदमा चल रहा है। यह सब दुर्भाग्य झारखंड को विरासत में मिला है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ ये छः पूर्व मंत्री ही पथभ्रष्ट और चोर हैं, ये तो पकड़ में आ गये। जो पकड़ में नहीं आये हैं, वो साधु हैं, ऐसा नहीं है। वर्तमान मंत्रिमंडल में एक महत्वपूर्ण विभाग के महत्वपूर्ण आदिवासी मंत्री तो जमीन के आकर्षण में इतने आसक्त हैं कि इन्हें कानून और अपने पद की गरिमा का ख्याल भी नहीं रहा। ये मर्यादाविहीन राजनेता स्वार्थ और लालच के दलदल में इतने गहरे उतरे हुए हैं कि इन्हें भला-बुरा की मर्यादा भी नहीं सूझती। झारखंड में ऐसे दर्जनों भ्रष्ट आचरण के नेता हैं, जो वर्तमान में प्रदेश की रहनुमाई में लगे हुए हैं। उसी प्रकार दर्जनों भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं, जो डा0 प्रदीप कुमार की राह पर ही चल रहे हैं। यहाँ यह कहने में हमें जरा भी संकोच नहीं होता कि नेता-अधिकारी के साथ-साथ कई घाघ मीडियाकर्मी भी भ्रष्टाचार के पोषण में दिन रात लगे हुए हैं। झारखंड का जिस दिन सौभाग्य जगेगा, उस दिन ये सारे नेता और अधिकारी और मीडिया वाले भी जेल में जीवन बीता रहे होंगे। लेकिन इसके लिए जरूरत है, निष्पक्ष और स्वच्छ जाँच एंजेसी की, जो ईमानदारी पूर्वक इनकी भ्रष्ट गतिविधियों की जाँच करे। 
झारखंड के उदय के साथ ही इस प्रदेश को लूटखण्ड के रूप में बदल दिया गया। एक तरफ झारखंड विधनसभा का प्रथम अध्यक्ष इंदर सिंह नामधरी, तो दूसरी तरफ मंत्रिमंडल के मुखिया बाबूलाल मराण्डी, दोनों ने मिल कर अपने अपने महकमे में भ्रष्टाचार की ऐसी खेती की, भष्टाचार का ऐसा रक्त-बीज बोया, जो अब तक, अपना जलवा दूर-दूर तक दिखला रहा है, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण इस देश में नहीं है।
‘स्वार्थ और लालच’ झारखंड की राजनीति का एक अहम हिस्सा बन गया है। यही स्वार्थ और लालच झारखंड के माननीयों को कर्तव्यच्युत और पथभ्रष्ट कर रहा है। झारखंड की 85 प्रतिशत जनता को दोनो समय का भरपेट भोजन और तन पर पूरा कपड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन माननीय जी को विलासिता की सारी सुविधएँ चाहिए। मानो झारखंड इन्हीं के लिए वरदान स्वरूप बना है। जनता के खून पसीने की कमाई पर इनका सनातन हक कायम हो गया है, ये जैसे चाहें, खजाने का उपभोग करते हैं। यह सब तब तक चल रहा है, जब तक कि झारखंड को कोई नेता नहीं मिला है, जिस दिन झारखंड को असली नेता मिल जायेगा, हमें इसकी आशा करनी चाहिए, उसी दिन झारखंड का असली उदय होगा। 

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